धन्य-धन्य भाग्य जटायी, जो लिए गोद रघुराई

धन्य-धन्य भाग्य जटायी,
जो लिए गोद रघुराई

जब दशा गीद की देखत हैं
करुणा कर पंकज फेरत हैं
द्रग से जलधार बहाई
जो लिए गोद रघुराई .....

घावों में बालू अधिक भरी
प्रभु छोड़ जटा निज बाँह धरी
तन की सब धूरि झराई
जो लिए गोद रघुराई .....

जग जीवन देने को कहते हैं
पर गीदराज नहीं हां कहते
सुर लोक देव पहुंचाई
जो लिए गोद रघुराई .....

करुणा कर करुणा कीन्ही  है
बहु भांति नाथ सुध लीन्ही है
सिय की निज खबर भुलाई
जो लिए गोद रघुराई ..... 

पितृ तुल्य क्रिया कर कीन्ही  है
बहु भांति नाथ सुध लीन्ही है
निज लोक दिया पहुंचाई 
जो लिए गोद रघुराई ..... 

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