मैं बुलाऊँ तो कैसे बुलाऊँ
मैं बुलाऊँ तो कैसे बुलाऊँ
तुम बुलाने के काबिल नहीं हो
तुम तो करते हो मोहन शरारत
प्यार करने के काबिल नहीं हो।
तुमने फोड़ी थी एक रोज मटकी
बस यही बात दिल में अटकी
ऐसे छलिये से... हाँ ...
ऐसे छलिये से मैं क्या मैं डरती। प्यार करने के काबिल नहीं हो।
तुमने फाड़ी थी एक रोज साड़ी
उसमे रह गई न एकउ किनारी
ऐसे छलिये से... हाँ ...
ऐसे छलिये से मैं क्या मैं डरती। प्यार करने के काबिल नहीं हो।
तुमने गोकुल में दहिया चुराया
वृन्दावन में रहस्य को रचाया
ऐसे छलिये से... हाँ ...
ऐसे छलिये से मैं क्या मैं डरती। प्यार करने के काबिल नहीं हो।
तुम बुलाने के काबिल नहीं हो
तुम तो करते हो मोहन शरारत
प्यार करने के काबिल नहीं हो।
तुमने फोड़ी थी एक रोज मटकी
बस यही बात दिल में अटकी
ऐसे छलिये से... हाँ ...
ऐसे छलिये से मैं क्या मैं डरती। प्यार करने के काबिल नहीं हो।
तुमने फाड़ी थी एक रोज साड़ी
उसमे रह गई न एकउ किनारी
ऐसे छलिये से... हाँ ...
ऐसे छलिये से मैं क्या मैं डरती। प्यार करने के काबिल नहीं हो।
तुमने गोकुल में दहिया चुराया
वृन्दावन में रहस्य को रचाया
ऐसे छलिये से... हाँ ...
ऐसे छलिये से मैं क्या मैं डरती। प्यार करने के काबिल नहीं हो।
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