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हनुमत तुम्हारे सहारे मैंने आज, सागर में नइया छोड़ दई

हनुमत तुम्हारे सहारे मैंने आज, सागर में नइया छोड़ दई काहे की तेरी नाव बनी है, काहे की पतवार ऐजी काहे की लागी जंजीर, सागर में नइया छोड़ दई..... चन्दन की मेरी नाव बनी है, चाँदी की पतवार, ऐजी सोने की लागी जंजीर, सागर में नइया छोड़ दई..... कौन हैं उसमे बैठन वाले, कौन हैं खेवनहार ऐजी कौन लगइहैं बेड़ा पार , सागर में नइया छोड़ दई..... रामजी उसमे बैठन वाले, लक्ष्मण खेवनहार हनुमत भइया लगइहैं बेड़ा पार , सागर में नइया छोड़ दई.....   

गजला गुह ले री मालिनिया, तेरे घर आ रहे राजकुमार

गजला गुह ले री मालिनिया, तेरे घर आ रहे राजकुमार - २ कै फूलों का गजला गुह लूँ , कै फूलों का हार कै फूलों की करूँ आरती होवें जय-जयकार नौ फूलों का गजला गुह, सात फूलों का हार पाँच फूलों की करूँ आरती होवें जय-जयकार किनके गले में गजला डालूँ, किनके डालूँ हार किनकी मैं तो करूँ आरती होवें जय-जयकार राम गले में गजला डालूँ, लक्ष्मण डालूँ हार सीता जी की करूँ आरती होवें जय-जयकार

प्रभु जी आप चले वनवास, अकेली घर मैं रह जाऊँगी

प्रभु जी आप चले वनवास अकेली घर मैं रह जाऊँगी - २ भोर होत तालों में जाऊँ निर्मल जल भर लाऊँ कि प्रभु जी आप करो स्नान मैं धीरे-धीरे जल बरसाऊँगी ... भोर होत बागों में जाऊँ सुन्दर फूल ले आऊँ कि प्रभु जी आप करो पूजा-पाठ मैं धीरे-धीरे फूल चढ़ाऊँगी ... भोर होत रसोई-घर जाऊँ सुन्दर भोज पकाऊँ कि प्रभु जी आप करो जल-पान मैं धीरे-धीरे बिजनी डुलाऊँगी ... साँझ होत सेज-घर जाऊँ सुन्दर सेज सजाऊँ कि प्रभु जी आप करो विश्राम  मैं धीरे-धीरे चरण दबाऊँगी ... 

गूथंन बैठी हार सुलोचन नारी है, आज मेरे पति आयें जीत रण भारी है

गूथंन बैठी हार सुलोचन नारी है आज मेरे पति आयें जीत रण भारी है जयमाल बनी अति सुन्दर नहीं मुख से जात बखानी मैं डालू गले में उसके जो आये जीत रण भारी जीत रण भारी है, आज मेरे पति आयें जीत रण भारी है ..... जब कड़क से चूड़ी कड़की जब आँख दाहनी फड़की जब सर से सरकी सारी मन में हुआ संशय भारी कि संशय भारी है, आज मेरे पति आयें जीत रण भारी है ..... जब कटी भुजायें आयीं तब सती देख उदघायीं धड़ पड़ा है लंक में सारा शीश जहाँ राम अवतारी हैं जहाँ राम अवतारी हैं, आज मेरे पति आयें जीत रण भारी है ..... 

धन्य-धन्य भाग्य जटायी, जो लिए गोद रघुराई

धन्य-धन्य भाग्य जटायी, जो लिए गोद रघुराई जब दशा गीद की देखत हैं करुणा कर पंकज फेरत हैं द्रग से जलधार बहाई जो लिए गोद रघुराई ..... घावों में बालू अधिक भरी प्रभु छोड़ जटा निज बाँह धरी तन की सब धूरि झराई जो लिए गोद रघुराई ..... जग जीवन देने को कहते हैं पर गीदराज नहीं हां कहते सुर लोक देव पहुंचाई जो लिए गोद रघुराई ..... करुणा कर करुणा कीन्ही  है बहु भांति नाथ सुध लीन्ही है सिय की निज खबर भुलाई जो लिए गोद रघुराई .....  पितृ तुल्य क्रिया कर कीन्ही  है बहु भांति नाथ सुध लीन्ही है निज लोक दिया पहुंचाई  जो लिए गोद रघुराई ..... 

कही मानों, न वन को चलो तुम सिया।

घर बैठो , न वन को चलो तुम सिया कही मानों , न वन को चलो तुम सिया। रखा न पैर पलंग से नीचे उतार के वन में बैठ जाओगी तुम कहीं हार के तेरे पैरों में छाले पड़ेंगे सिया पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों.... खाने को फल मिलेंगे वो भी कभी-कभी खाने पड़ेंगे खट्टे-मीठे सभी-सभी नहीं जायेगा तुमसे वो पानी पिया पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों.... पत्ते बिछा के भूमि में सोया न जायेगा शेरों के दर के मारे रोया न जायेगा रैन होगी अँधेरी न होगा दिया पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों.... घर बैठो , न वन को चलो तुम सिया कही मानों , न वन को चलो तुम सिया। Video के लिए कृपया नीचे दिए गए मेरे Youtube Channel की लिंक में क्लिक करें और Subscribe करें- https://www.youtube.com/channel/UCmXMH5vIfHTWbh2sHqmxoUw/?sub_confirmatiom=1