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Showing posts from May, 2020

जय देव जय देव / जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता

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जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता जय देव जय देव अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी विघ्न विनाशन मंगल मूरत अधिकारी कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी जय जय जय जय जय जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता जय देव जय देव भावभगत से कोई शरणागत आवे संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता जय देव जय देव

जय देव जय देव / सुखकर्ता दुखहर्ता

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जय देव जय देव,  जय मंगल मूर्ति, श्री मंगल मूर्ति  दर्शनमात्रे मनःकामना पूर्ति जय देव जय देव सुखकर्ता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची कंठी झलके माल मुकताफळांची। जय देव जय देव . . . रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा चंदनाची उटी कुमकुम केशरा हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया। जय देव जय देव . . . लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना दास रामाचा वाट पाहे सदना संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना। जय देव जय देव . . .. शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को। जय देव जय देव . . .

बृहस्पतिदेव आरती

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जय बृहस्पति देवा, स्वामी जय बृहस्पति देवा।  छिन छिन भोग लगाऊ कदली फल मेवा।।  ॐ जय बृहस्पति देवा। तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।  जगत पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी।। ॐ जय बृहस्पति देवा। चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।  सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।। ॐ जय बृहस्पति देवा। तन, मन, धन अर्पणकर जो जन शरण पड़े।  प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।। ॐ जय बृहस्पति देवा। दीन दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।  पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।। ॐ जय बृहस्पति देवा। सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारी।  विषय विकार मिटाओ संतन सुखकारी।। ॐ जय बृहस्पति देवा। जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे।  स्वामी भाव सहित गावे।  कहत शिवानंद स्वामी सुख-संपत्ति पावे ।। ॐ जय बृहस्पति देवा।

बृहस्पति व्रत कथा / गुरुवार व्रत कथा

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बृहस्पति व्रत कथा / गुरुवार व्रत कथा विधि सूर्योदय से पहले उठकर स्नान से निवृत्त होकर पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। शुद्ध जल छिड़ककर पूरा घर पवित्र करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर बृहस्पतिवार की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। तत्पश्चात पीत वर्ण के गंध-पुष्प और अक्षत से विधिविधान से पूजन करें। इसके बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करें- धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोऽस्तु ते॥ तत्पश्चात आरती कर व्रतकथा सुनें। इस दिन एक समय ही भोजन किया जाता है। व्रत करने वाले को भोजन में चने की दाल अवश्य खानी चाहिए। बृहस्पतिवार के व्रत में कंदलीफल (केले) के वृक्ष की पूजा की जाती है। बृहस्पति व्रत कथा / गुरुवार व्रत कथा एक समय की बात है, भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य पूजा पाठ करता, भगवन दर्शन करने मंदिर जाता और गरीबों की सहायता किया करता था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगवाऩ दर्शन करने जाता था, परंतु यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी । वह न ही गरीबों को दान देती थी आॏर न ही कभी भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी ऐसा