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Showing posts from March, 2020

अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं

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अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊँ मैं करू किस तरह आवाहन, कि तुम मौजूद हर जगह निरादर है बुलाने में, अगर घंटी बजाऊं मैं ..... तुम्हीं मौजूद सूरज में, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में भला भगवान को भगवन, पर कैसे चढ़ाऊं मैं ..... लगाया भोग है तुमको, ये है एक अपमान करना खिलाता है जो शृष्टि को, उसे कैसे खिलाऊँ मैं ..... तेरी ज्योति से रोशन है, सूरज चाँद और तारे यहाँ अँधेरे हैं मुझको, अगर दीपक जलाऊं मैं ..... बड़े नादान हैं वो जन , जो तेरी सूरत बनाते हैं बनाता है जो जग को, उसे कैसे बनाऊं मैं ..... अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊँ मैं .....

भगवान तुम्हारी दुनिया में, क्यों दिल ठुकराए जाते हैं

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भगवान तुम्हारी दुनिया में क्यों दिल ठुकराए जाते हैं क्यों चाहने वाले के अरमां मिट्टी में मिलाये जाते हैं होती है बुराई की पूजा तेरी इस अंधी दुनिया में हर एक इंशा आंसू की तरह नजरों से गिराए जाते हैं ऐ जीवन बगिया के मालिक तेरी बगिया की रीत है क्या जो फूल खिले सेहरे के लिए अर्थी में चढ़ाये जाते हैं तेरे बेदर्द ज़माने में लाखों के महल आशाओं के हर रोज बनाये जाते हैं हर रोज गिराए जाते हैं