अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं
अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊँ मैं
करू किस तरह आवाहन, कि तुम मौजूद हर जगह
निरादर है बुलाने में, अगर घंटी बजाऊं मैं .....
तुम्हीं मौजूद सूरज में, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में
भला भगवान को भगवन, पर कैसे चढ़ाऊं मैं .....
लगाया भोग है तुमको, ये है एक अपमान करना
खिलाता है जो शृष्टि को, उसे कैसे खिलाऊँ मैं .....
तेरी ज्योति से रोशन है, सूरज चाँद और तारे
यहाँ अँधेरे हैं मुझको, अगर दीपक जलाऊं मैं .....
बड़े नादान हैं वो जन , जो तेरी सूरत बनाते हैं
बनाता है जो जग को, उसे कैसे बनाऊं मैं .....
अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊँ मैं .....
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊँ मैं
करू किस तरह आवाहन, कि तुम मौजूद हर जगह
निरादर है बुलाने में, अगर घंटी बजाऊं मैं .....
तुम्हीं मौजूद सूरज में, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में
भला भगवान को भगवन, पर कैसे चढ़ाऊं मैं .....
लगाया भोग है तुमको, ये है एक अपमान करना
खिलाता है जो शृष्टि को, उसे कैसे खिलाऊँ मैं .....
तेरी ज्योति से रोशन है, सूरज चाँद और तारे
यहाँ अँधेरे हैं मुझको, अगर दीपक जलाऊं मैं .....
बड़े नादान हैं वो जन , जो तेरी सूरत बनाते हैं
बनाता है जो जग को, उसे कैसे बनाऊं मैं .....
अजब हैरान हूँ भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊँ मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊँ मैं .....
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https://youtube.com/shorts/80EC5m1ZQn4?si=d5m-W8Ru9ptSpTOy
Beautiful bhajan with beautiful thought. Thanks for sharing
ReplyDeleteBahut sunder
ReplyDeleteइस भजन की खोज कर रहा था। उपलब्ध हो गया है। धन्यवाद जय श्री राम जी 🙏
ReplyDeleteऐसे ही और भजन के लिए "सतपाल पथिक भजनावली" बेमोल भजनावली" पुस्तक मंगाइये।
DeleteBahot sunder bhav hain bhajan ke 🙏
ReplyDeleteकुछ लाईनें सही नहीं हैं। " तुम्हीं व्यापक हो सूरज में, वाली लाईन गलत है।कृपया सही कर लें।
ReplyDeleteकिस प्रकार गलत है...
Deleteईशोपनिषद:- ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। जड़-चेतन प्राणियों वाली यह सृष्टि सर्वत्र परमात्मा से व्याप्त है।