कही मानों, न वन को चलो तुम सिया।
घर बैठो , न वन को चलो तुम सिया
कही मानों , न वन को चलो तुम सिया।
रखा न पैर पलंग से नीचे उतार के
वन में बैठ जाओगी तुम कहीं हार के
तेरे पैरों में छाले पड़ेंगे सिया
पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों....
खाने को फल मिलेंगे वो भी कभी-कभी
खाने पड़ेंगे खट्टे-मीठे सभी-सभी
नहीं जायेगा तुमसे वो पानी पिया
पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों....
पत्ते बिछा के भूमि में सोया न जायेगा
शेरों के दर के मारे रोया न जायेगा
रैन होगी अँधेरी न होगा दिया
पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों....
घर बैठो , न वन को चलो तुम सिया
कही मानों , न वन को चलो तुम सिया।
कही मानों , न वन को चलो तुम सिया।
रखा न पैर पलंग से नीचे उतार के
वन में बैठ जाओगी तुम कहीं हार के
तेरे पैरों में छाले पड़ेंगे सिया
पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों....
खाने को फल मिलेंगे वो भी कभी-कभी
खाने पड़ेंगे खट्टे-मीठे सभी-सभी
नहीं जायेगा तुमसे वो पानी पिया
पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों....
पत्ते बिछा के भूमि में सोया न जायेगा
शेरों के दर के मारे रोया न जायेगा
रैन होगी अँधेरी न होगा दिया
पछताओगी मन में न कहना सिया। कही मानों....
घर बैठो , न वन को चलो तुम सिया
कही मानों , न वन को चलो तुम सिया।
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