चरण कमलों की रज चाहिये

चरण कमलों की रज चाहिये
न चाहिये नाथ उतराई।

कठौता जल से भर लाया
प्रभु के पैर धोने को
कछु धोया - कछु पीया
कछु परिवार में बाँटा।  न चाहिये नाथ उतराई ....

अहिल्या नारी गौतम की
शिला-पत्थर की कर डाली
प्रभु के रज-पद पाते ही
शिला से नारी हुई ठाड़ी।  न चाहिये नाथ उतराई ....

बीच गंगा में जाकर के
इशारा राम ने कीन्हा
सीये के मन में जानी है
अँगूठी राम को दीन्ही।

यही है नाथ उतराई - २

चरण कमलों की रज चाहिये
न चाहिये नाथ उतराई।

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