भगवान तुम्हें मैं खत लिखती, पर पता मुझे मालूम नहीं

भगवान तुम्हें मैं खत लिखती,
पर पता मुझे मालूम नहीं

तालों में देखा एक बार
धोबी से पूंछा बार-बार
पत्थर में छिपे हैं मनमोहन
पर पता मुझे मालूम नहीं .....

कुओं में देखा एक बार
कहरा से पूंछा बार-बार
कलशों में छिपे हैं मनमोहन
पर पता मुझे मालूम नहीं .....

बागों में देखा एक बार
माली से पूंछा बार-बार
फूलों में छिपे हैं मनमोहन
पर पता मुझे मालूम नहीं .....

महलों में देखा एक बार
राजा से पूंछा बार-बार
खिड़की में छिपे हैं मनमोहन
पर पता मुझे मालूम नहीं .....

मंदिर में देखा एक बार
भक्तों से पूंछा बार-बार
ह्रदय में छिपे हैं मनमोहन
पर पता मुझे मालूम नहीं .....

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